अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन: कैसे ये सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं?
प्रस्तावना
सरकारी नौकरी भारत में सदैव एक प्रतिष्ठित और स्थिर करियर विकल्प रही है। परंतु हाल के वर्षों में सरकारी नौकरियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें दो प्रमुख विषय हैं – अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली की मांग। ये दोनों व्यवस्थाएं सामाजिक दृष्टिकोण से सहानुभूतिपूर्ण भले ही लगती हों, लेकिन इनका दीर्घकालिक असर सरकारी प्रणाली की कार्यकुशलता, वित्तीय संतुलन और प्रशासनिक गुणवत्ता पर गंभीर रूप से पड़ रहा है। इस लेख में हम विश्लेषण करेंगे कि कैसे ये दोनों व्यवस्थाएं सरकारी नौकरियों के भविष्य को प्रभावित कर रही हैं।
अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन: कैसे ये सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं?
1. अनुकंपा नियुक्ति: एक मानवीय पहल या दक्षता पर चोट?
अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य यह होता है कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से अक्षम हो जाता है, तो उसके परिजनों को आर्थिक सहायता देने के लिए उसे नौकरी दी जाए। यह एक मानवीय नीति है, लेकिन इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं।
(क) योग्यता की अनदेखी
अनुकंपा नियुक्ति में चयनित व्यक्ति प्रायः केवल मृत कर्मचारी का परिजन होता है, जिसकी शिक्षा या क्षमता उस पद के लिए उपयुक्त नहीं होती। इससे उस विभाग की दक्षता में गिरावट आती है। सरकारी सेवाओं में दक्षता और विशेषज्ञता आवश्यक होती है, और यह नियुक्ति प्रक्रिया इस सिद्धांत के विपरीत जाती है।
(ख) प्रशासनिक बोझ में वृद्धि
अनुकंपा के आधार पर भर्ती से कर्मचारियों की संख्या तो बढ़ती है, लेकिन उनके प्रशिक्षण और कार्यक्षमता की कमी के कारण प्रशासनिक गुणवत्ता में गिरावट आती है। इससे कार्य में देरी, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की समस्या पैदा होती है।
(ग) प्रोत्साहन तंत्र में दोष
जब नियुक्ति का आधार योग्यता नहीं बल्कि संबंध होता है, तो यह अन्य प्रतिभाशाली उम्मीदवारों के लिए हतोत्साहित करने वाला होता है। इससे प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती है।
2. पुरानी पेंशन प्रणाली: पुनः वापसी की मांग और उसके प्रभाव
पुरानी पेंशन योजना (OPS) में रिटायर होने के बाद कर्मचारी को आजीवन पेंशन मिलती थी, जो अंतिम वेतन का एक निश्चित प्रतिशत होती थी। वर्ष 2004 के बाद केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना (NPS) लागू की, जिसमें पेंशन राशि अंशदान आधारित होती है और बाज़ार से जुड़ी होती है। हाल के वर्षों में पुरानी पेंशन की बहाली की मांग फिर ज़ोर पकड़ रही है।
अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन: कैसे ये सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं?
(क) राजकोषीय असंतुलन
पुरानी पेंशन व्यवस्था में सरकार को आजीवन पेंशन देनी होती है, जो राज्य और केंद्र सरकारों पर भारी आर्थिक बोझ डालती है। इससे पूंजीगत व्यय में कटौती होती है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं।
(ख) अन्य कर्मचारियों पर असमानता
जब कुछ राज्यों में OPS बहाल होती है, तो अन्य राज्यों के कर्मचारी भी इसी की मांग करने लगते हैं, जिससे पूरे देश में नीति निर्धारण में असंतुलन पैदा होता है।
(ग) अर्थव्यवस्था पर दबाव
भारत जैसे विकासशील देश में जहां संसाधनों की कमी है, OPS जैसी नीतियां सरकार के वित्तीय संसाधनों को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित कर सकती हैं। भविष्य में यदि OPS व्यापक रूप से बहाल होती है, तो यह वित्तीय संकट को जन्म दे सकती है।
3. सरकारी प्रणाली पर इन दोनों व्यवस्थाओं का संयुक्त प्रभाव
(क) नई भर्तियों पर प्रभाव
अनुकंपा नियुक्तियों और OPS की वजह से सरकारों का खर्चा बढ़ता है, जिससे नई भर्तियों पर रोक लगाई जाती है या उसे टाला जाता है। इससे लाखों युवा बेरोजगार रह जाते हैं।
(ख) योग्यता आधारित व्यवस्था पर संकट
इन दोनों व्यवस्थाओं के कारण योग्यता आधारित चयन प्रक्रिया की अनदेखी होती है। जब नियुक्ति का आधार योग्यता न होकर संबंध या पुरानी नीतियां हों, तो पूरी चयन प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं।
(ग) राजनीतिकरण और लोकलुभावन राजनीति
राजनैतिक दल चुनावों में OPS की बहाली और अनुकंपा नियुक्तियों का वादा कर जनता को लुभाते हैं, जिससे नीति निर्माण में दीर्घकालिक दृष्टि की बजाय तात्कालिक राजनीतिक लाभ को महत्व दिया जाता है।
4. समाधान और संतुलन की आवश्यकता
इन व्यवस्थाओं को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इनका मानवीय पक्ष भी महत्वपूर्ण है। लेकिन इनका संतुलित और व्यावसायिक तरीके से क्रियान्वयन आवश्यक है।
सुझाव:
- अनुकंपा नियुक्ति की जगह एकमुश्त आर्थिक सहायता या स्वावलंबन हेतु प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
- OPS की बहाली की जगह NPS को सुधार कर उसे अधिक सुरक्षित और लाभकारी बनाया जाए।
- नीति निर्धारण में दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता को प्राथमिकता दी जाए।
- योग्यता और पारदर्शिता को हर नियुक्ति प्रक्रिया का मूल सिद्धांत बनाया जाए।
निष्कर्ष
अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन जैसी व्यवस्थाएं अपने मूल उद्देश्य में सहानुभूतिपूर्ण और कल्याणकारी रही हैं, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ये व्यवस्थाएं सरकारी तंत्र पर भारी पड़ रही हैं। जब योग्यता, दक्षता और वित्तीय अनुशासन की जगह भावनात्मक और राजनीतिक निर्णय लिए जाते हैं, तो उनका परिणाम दीर्घकालिक रूप से नकारात्मक होता है। भारत जैसे विशाल और विविध देश को एक संतुलित, दक्ष और पारदर्शी प्रशासनिक प्रणाली की आवश्यकता है, जिसके लिए इन व्यवस्थाओं का पुनः मूल्यांकन और सुधार अत्यंत आवश्यक है।
अनुकंपा नियुक्ति और पुरानी पेंशन: कैसे ये सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं?